विवेक गुप्ता-
आदरणीय,
गौतम अडानी,करन अडानी, प्रीती अडानी जी…
पीछे न जाकर अगर अभी की बात करूं तो गौतम अडानी जी आपने राहुल कंवल सर को एनडीटीवी, एनडीटीवी इंडिया संस्थान की नंबर दो की पोजिशन सौंपकर बेहद ही सराहनीय और निर्णायक कदम उठाया है. जिसका फायदा संस्थान को मिलना ही मिलना है.
संस्थान में एक प्रदेश (जो कि काफी छोटा है और जिससे चैनल को टीआरपी भी काफी कम मिलती है) के कई लोग निर्णायक और बड़ी पोजिशन पर हैं, सबसे ज्यादा TRP और नंबर यूपी देता है और वहां के लोग चैनल में शीर्ष पोजिशन में नजर नहीं आते जो कि काफी शर्मनाक और चौंकाने वाला है. इससे चैनल में पक्षपात और फेवरिज्म बढ़ रहा है. कई बातें सामने भी आई हैं और उच्च पदों पर बैठे लोगों के संज्ञान में भी हैं लेकिन एक कहावत यहां चरित्रार्थ हो रही है, ”जब सैंया हुए कोतवाल तो डर काहे का…”
संस्थान में शिकायत करने वालों को ही अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. चाहे विवेक की समरजीत और नीतू शर्मा (बदला नाम, संस्थान में सुबह-सुबह अपनी सास की बुराई करने के लिए जानी जाने वाली) के खिलाफ चरित्र हनन की शिकायत हो, या फिर रविकांत के खिलाफ वो शिकायत जो कहीं और होती तो शायद कम से कम वो टर्मिनेट तो होते ही. (समरजीत और नीतू शर्मा के खिलाफ विवेक ने देशबंधु सिंह को कई बार फोन, मेसेज किए लेकिन निष्क्रिय सिंह निष्क्रिय ही रहे. इन दोनों के खिलाफ मेल का स्क्रीन शॉट मैंने अटैच किया है.)
रविकांत जी अपनी टीम में लड़ाई करवाने, ब्लैकमेल करने, टीम के साथियों को चढ़ाकर एक-दूसरे के खिलाफ एचआर तक भेजने.. छोटे बच्चे की तरह हर बात को बढ़ा चढ़ाकर संतोष सर तक पहुंचाना और उन्हें गुमराह करना…रविकांत जी दो साथियों की लड़ाई में एचआर से उसकी डांट लगवा देने में भी माहिर थे जो तीन दिन से ऑफिस ही नहीं आ रहा था… उनका पसंदीदा विषय था चापलूसी… किसी भी गुनाह से ज्यादा बड़ा है अन्याय कर देना, इंसाफ की जगह पीड़ित के साथ ही खेल कर देना… और ऐसा एनडीटीवी में सिर्फ एक बार नहीं हुआ….
वैसे ज्यादा अच्छा होता अगर राहुल कंवल सर नंबर एक की पोजिशन पर यहां आते, खैर कभी-कभी जो वर्तमान में नहीं होता वो जल्दी ही भविष्य में हो जाता है और आज का ये कदम क्या पता आगे आने वाले भविष्य को सोचकर ही उठाया गया हो. और मेरा ये सपना जल्दी ही सच हो… संजय पुगलिया, वैसे मीडिया में 58 के बाद रिटायरमेंट का प्रावधान है ऐसा कहा जाता है….
राहुल सर के आने से संस्थान एनडीटीवी इंडिया, एनडीटीवी एमपी-सीजी में हो रहे पक्षपात, फेवरिज्म, तानाशाही, अन्याय, अत्याचार, इंसानियत का खून, महिलासशक्तिकरण का मजाक बनने पर रोक लगना तय है और निर्दयी, बेरहम गैंग का सफाया होना उसका नेक्सस टूटना भी निश्चित दिखाई दे रहा है.
Hi, what are you looking for?
Search
No. 1 Indian Media News Portal
No. 1 Indian Media News Portal
टीवीगौतम अडानी के नाम एक पत्रकार का खुला खत- ‘नक्कारे और चापलूस लोग NDTV का बेड़ा गर्क कर देंगे!’
BybhadasdeskPublished39 minutes ago
विवेक गुप्ता-
आदरणीय,
गौतम अडानी, करन अडानी, प्रीती अडानी जी…
पीछे न जाकर अगर अभी की बात करूं तो गौतम अडानी जी आपने राहुल कंवल सर को एनडीटीवी, एनडीटीवी इंडिया संस्थान की नंबर दो की पोजिशन सौंपकर बेहद ही सराहनीय और निर्णायक कदम उठाया है. जिसका फायदा संस्थान को मिलना ही मिलना है.
संस्थान में एक प्रदेश (जो कि काफी छोटा है और जिससे चैनल को टीआरपी भी काफी कम मिलती है) के कई लोग निर्णायक और बड़ी पोजिशन पर हैं, सबसे ज्यादा TRP और नंबर यूपी देता है और वहां के लोग चैनल में शीर्ष पोजिशन में नजर नहीं आते जो कि काफी शर्मनाक और चौंकाने वाला है. इससे चैनल में पक्षपात और फेवरिज्म बढ़ रहा है. कई बातें सामने भी आई हैं और उच्च पदों पर बैठे लोगों के संज्ञान में भी हैं लेकिन एक कहावत यहां चरित्रार्थ हो रही है, ”जब सैंया हुए कोतवाल तो डर काहे का…”
संस्थान में शिकायत करने वालों को ही अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. चाहे विवेक की समरजीत और नीतू शर्मा (बदला नाम, संस्थान में सुबह-सुबह अपनी सास की बुराई करने के लिए जानी जाने वाली) के खिलाफ चरित्र हनन की शिकायत हो, या फिर रविकांत के खिलाफ वो शिकायत जो कहीं और होती तो शायद कम से कम वो टर्मिनेट तो होते ही. (समरजीत और नीतू शर्मा के खिलाफ विवेक ने देशबंधु सिंह को कई बार फोन, मेसेज किए लेकिन निष्क्रिय सिंह निष्क्रिय ही रहे. इन दोनों के खिलाफ मेल का स्क्रीन शॉट मैंने अटैच किया है.)
रविकांत जी अपनी टीम में लड़ाई करवाने, ब्लैकमेल करने, टीम के साथियों को चढ़ाकर एक-दूसरे के खिलाफ एचआर तक भेजने.. छोटे बच्चे की तरह हर बात को बढ़ा चढ़ाकर संतोष सर तक पहुंचाना और उन्हें गुमराह करना…रविकांत जी दो साथियों की लड़ाई में एचआर से उसकी डांट लगवा देने में भी माहिर थे जो तीन दिन से ऑफिस ही नहीं आ रहा था… उनका पसंदीदा विषय था चापलूसी… किसी भी गुनाह से ज्यादा बड़ा है अन्याय कर देना, इंसाफ की जगह पीड़ित के साथ ही खेल कर देना… और ऐसा एनडीटीवी में सिर्फ एक बार नहीं हुआ….
वैसे ज्यादा अच्छा होता अगर राहुल कंवल सर नंबर एक की पोजिशन पर यहां आते, खैर कभी-कभी जो वर्तमान में नहीं होता वो जल्दी ही भविष्य में हो जाता है और आज का ये कदम क्या पता आगे आने वाले भविष्य को सोचकर ही उठाया गया हो. और मेरा ये सपना जल्दी ही सच हो… संजय पुगलिया, वैसे मीडिया में 58 के बाद रिटायरमेंट का प्रावधान है ऐसा कहा जाता है….
राहुल सर के आने से संस्थान एनडीटीवी इंडिया, एनडीटीवी एमपी-सीजी में हो रहे पक्षपात, फेवरिज्म, तानाशाही, अन्याय, अत्याचार, इंसानियत का खून, महिलासशक्तिकरण का मजाक बनने पर रोक लगना तय है और निर्दयी, बेरहम गैंग का सफाया होना उसका नेक्सस टूटना भी निश्चित दिखाई दे रहा है.
नक्सलियों को बढ़ावा देने वाला वामपंथ, जेएनयू के बाद अगर कहीं सबसे ज्यादा दिखाई दिया तो वो एनडीटीवी, एनडीटीवी इंडिया, एनडीटीवी एमपी-सीजी में ही दिया. आपके अंडर संस्थान आने के बाद कई वामपंथी विचार धारा के लोग संस्थान से अलग हो गए…
कोई भी विचार धारा गलत नहीं है चाहे वो वामपंथ की हो या फिर दक्षिणपंथ की हो. मैं दोनों ही विचारधारा का सम्मान करता हूं लेकिन वामपंथ के नाम पर छद्म वामपंथ का मैं पुरजोर विरोध करता हूं. जिसमें महिलाओं के उत्थान के नाम पर उनका शोषण किया जाता है. खुलकर नशे को बुद्धि जगाने का कारक माना जाता है. एक धर्म विशेष की आलोचना की जाती है. आजादी, खुलापन के नाम पर फीमेल को मोलेस्ट्रेट किया जाता है और इसे छद्म वामपंथी आधुनिकता का नाम देते हैं. ये लोग कभी भी अपनी बहन, अपनी बेटी से इस तरह की आधुनिकता एक्सेप्ट नहीं करेंगे.
कभी-कभी तो शोषित महिलाओं को भी पता नहीं चलता कि उनका शोषण हुआ है. हां बहुत बाद में इस बात का अहसास होता है कि उन्होंने इस छद्म वामपंथ के नाम पर क्या- क्या खो दिया है.
संस्थान में देशबंधु सिंह, समरजीत सिंह, रविकांत ओझा और इनके साथियों के रूप में ऐसे छद्म वामपंथी अभी भी मौजूद हैं. जिससे काम की पारदर्शिता पर एक संदेह बना ही रहता है और ऊपर जो लिखा वो नुकसान तो है ही.
आरिफ नाम का एक छद्म वामपंथी संस्थान का बड़ा नुकसान करके यहां से दफा हो चुका है. हालांकि वो नुकसान इतना बड़ा था जिसकी भरपाई में कम से कम देशबंधु सिंह और समरजीत को भी संस्थान से निकाल देना चाहिए था. लेकिन वही कहावत है न ”जब सैंया हुए कोतवाल तो डर काहे का..”
एनडीटीवी से असली वामपंथ की विचारधारा के लोगों ने किनारा कर लिया लेकिन यहां छद्म वामपंथी बचे रह गए. क्योंकि इनके लिए स्वाभिमान और विचार से ज्यादा पद और पैसा ज्यादा महत्वपूर्ण रहा. ये लोग समय और परिस्थिति के हिसाब से पाला बदलने में माहिर हैं. ये लोग मौका मिलते ही जहर उगलना और छद्म वामपंथ के मकसद को पूरा करने में एक मिनट नहीं लगाएंगे. और ऐसा किया भी है. पूरे का पूरा गिरोह है तो मजबूती भी है, वैसे भी कहा गया है बुरे लोगों का गिरोह ज्यादा संगठित होता है.
ऐसे छद्म वामपंथियों और इनके गिरोह के लिए एक चीज और, ये किसी नए को आगे बढ़ते हुए देखना पसंद नहीं करते. इन्हें नहीं पसंद आता है किसी डेस्क पर आए नए बंदे की एक दो महीने में नेशनल चैनल पर रिपोर्ट आ जाना. या संस्थान के शीर्ष व्यक्ति का इस नए बंदे को पसंद करना, आगे बढ़ाने की बात करना…सच्चे, बेबाक, निडर, टैलेंटेड लोगों से इन्हें नफरत होती है.. इन लोगों का कोई ईमान नहीं होता ये लोग ब्लो द बेल्ट वार करने में, पीछे से वार करने में माहिर होते हैं…
संस्थान को समरजीत, नीतू शर्मा (बदला नाम), रविकांत ओझा और इनके साथियों ने न्यूज चैनल से ज्यादा गॉसिप सेंटर बना दिया है जो राकेश परमार सर के आने के बाद एक मीडिया संस्थान में दुबारा बदल जाता है. पहले शाम को उनके जाने के बाद भी ऐसा होता था लेकिन आरिफ की विदाई ने इसे खत्म कर दिया है.
अभी खबर आई थी कि संस्थान में करीब 200 लोगों को पीआईपी दिया है. अडानी सर आपकी वजह से न जाने कितने परिवारों के चूल्हे जल रहे हैं. आप प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कितने ही लोगों के अन्नदाता है. तो फिर 200 लोगों को पीआईपी क्यों? शायद आपको तो इसकी खबर ही न हो.
अच्छा होता देशबंधु सिंह जिनकी सैलरी पर कम से कम 10-15 सीनियर सब एडिटर पोस्ट के लोगों को काम मिल जाता. उन्हें पूर्व में संस्थान में तानाशाही, गंध मचाने के लिए, आरिफ और समरजीत जैसे छद्म वामपंथियों (इसी में समझ लीजिए इनके कर्म) को बढ़ावा और तानाशाह जैसे अधिकार देने के लिए और संस्थान में हुए एक बहुत, बहुत, बहुत बड़े ब्लंडर (5 फरवरी 2025, एग्जिट पोल के समय) पर एज ए कप्तान होने के नाते निकाल देना चाहिए था और इनसे और अन्य जिम्मेदार लोगों से वसूली भी करनी चाहिए थी.
अच्छा होगा अब भी देशबंधु सिंह, समरजीत सिंह, रविकांत ओझा, नीतू शर्मा (गॉसिप क्वीन) और इनके गैंग के अन्य सदस्यों का केवल सब एडिटर का ही टेस्ट हो जाए राहुल कंवल सर की देखरेख में. पानी का पानी और कचरा अलग हो जाएगा.
इनकी जगह किसी काबिल, जरूरतमंद, झूठ न बोलने वाले, साजिश न करने वाले, गॉसिप न करने वालों को काम मिल जाएगा…इनमें से अधिकतर को देशबंधु सिंह और ऊपर के मैनेजमेंट की मेहरबानी से अच्छा इंक्रीमेंट मिल रहा है. जबकि इनमें से रविकांत ओझा को निकाल दें तो तीनों को शुद्ध हिंदी लिखनी भी नहीं आती, खबरों की समझ, बेहतर करने की कला, अच्छी लेखन शैली तो इन तीनों के लिए काला अक्षर भैंस बराबर ही है.
प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता…..हो जाए एक सब एडिटर का ही टेस्ट (जबकि ये लोग एचओडी, डिप्टी एडिटर, शिफ्ट इंचार्ज और मैनेजर जैसे बड़े पदों पर हैं) लेकिन ये टेस्ट राहुल सर की देखरेख में ही हो, कहा न पूरा गैंग है क्या पता गैंग के दूसरे सदस्यों को ही जज बनाकर ये बेगुनाही और काबिलियत का सर्टिफिकेट ले ले. इसकी आशंका इसलिए जाहिर की है क्योंकि ऐसा यहां होता रहा है कई बार लगातार..
खेला करने के विशेषज्ञ समरजीत की तो खबरों का मैंने पोस्टमार्टम भी किया है तब समझ में आया सीनियर होना और काबिल होना दोनों अलग-अलग बातें हैं… और कोई इतनी गलती और नासमझी कैसे कर सकता है वो भी जो डिप्टी एडिटर (शिफ्ट इंचार्ज) हो.
सर अच्छा होगा आप देशबंधु सिंह जैसे मोटा वेतन पाने वाले और नाकाबिल लोगों को ढूंढ़कर उन्हें निकाले, छोटे या मध्यम पोस्ट वालों को निकालने या पीआईपी देने का कोई मतलब नहीं बनता… पीआईपी में भी यहां पक्षपात और फेवरिज्म चल रहा है, वरना समरजीत, नीतू शर्मा, देशबंधु सिंह को पीआईपी नहीं मिल जाता…अडानी सर इन लोगों को कोई नहीं जानता ये तो बुरा करके चले जाएंगे।
सर कृपया कर देशबंधु सिंह, समरजीत, नीतू शर्मा, रविकांत ओझा को बाहर करें साथ ही इन वामपंथी गैंग के बेरहम सदस्यों को बाहर करें और पीआईपी (PIP) को पर्सनल इंटरेस्ट प्रोपेगेंडा न बनने दे.. और निडर स्ट्रिंगर साथियों, सम्माननीय ड्राइवर साथियों, सम्माननीय सफाई कर्मचारियों, खाने-पीने का ध्यान रखने वाले साथियों और उनके परिवार के लिए कुछ कीजिए…ऐसा कुछ कीजिए कि इन सभी की नौकरी स्थाई हो, नौकरी जाने के साए में नौकरी करना बेहद कठिन होता है.
इन सभी का वेतन देशबंधु सिंह जैसा मोटा नहीं है लेकिन ये सभी और इनका परिवार आपको दुआ बहुत देंगे…पूरा विश्वास है आप इन सभी को निराश नहीं करेंगे.. छंटनी की शुरुआत हमेशा ऊपर से नीचे की तरफ हो ऐसा मेरा आग्रह है आपसे…क्योंकि किसी के ध्रूमपान का खर्चा किसी के घर के पूरे महीने के खर्च से ज्यादा होता है।
मैंने जो भी लिखा है पूरा सच लिखा है (सबूत भी हैं ज्यादातर बातों के मेरे पास), मैं किसी का भी कभी सामना करने के लिए तैयार हूं…और किसी भी तरह का लाई डिटेक्टर टेस्ट कराने के लिए भी तैयार हूं एक-एक बात के लिए…पीछे बोलना बड़ा आसान है एक बार सामना करिेए.. फिर। धन्यवाद…
