देश के प्रमुख समाचार नेटवर्क इंडिया न्यूज़ में गंभीर वेतन संकट की खबरें सामने आ रही हैं। चैनल से जुड़े कई कर्मचारियों ने दावा किया है कि उन्हें पिछले तीन महीनों से तनख्वाह नहीं मिली, जिससे उन्हें आर्थिक तंगी और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ रहा है।
टेक्निकल स्टाफ, रिपोर्टर्स और प्रोड्यूसर्स सहित कई विभागों के कर्मचारी इस समस्या से जूझ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, कंपनी प्रबंधन ने अब तक न तो वेतन भुगतान को लेकर कोई स्पष्ट समय-सीमा दी है और न ही कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण।
वेतन मांगने पर उत्पीड़न का आरोप
कुछ कर्मचारियों ने आरोप लगाया है कि जब उन्होंने वेतन को लेकर अपनी आवाज़ उठाई, तो उन्हें चुप कराने की कोशिश की गई या फिर तनावपूर्ण माहौल में काम करने को मजबूर किया गया। कई कर्मचारियों को यह भी डर है कि आवाज़ उठाने पर नौकरी से हटाया जा सकता है।
प्रबंधन पर पक्षपात का आरोप
कर्मचारियों का कहना है कि जहां एक ओर अधिकांश स्टाफ वेतन के लिए संघर्ष कर रहा है, वहीं प्रबंधन से जुड़े चुनिंदा लोगों और हाल ही में नियुक्त कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को नियमित भुगतान किया जा रहा है। इनमें पूर्व ज़ी न्यूज़ के अधिकारी अभय ओझा की टीम के लोग शामिल हैं, जिनकी नियुक्ति हाल ही में हुई है।
सूत्र बताते हैं कि HR विभाग के कुछ ‘पसंदीदा’ कर्मचारियों को भी आंशिक या विलंबित भुगतान मिल रहा है, जबकि अधिकांश पुराने और मेहनती कर्मचारी पूर्ण रूप से वेतन से वंचित हैं।
राणा यशवंत भी जब तक रहे सिर्फ़ अपनी चिंता किए, सैलरी संकट पर खुलकर प्रबंधन से बात कर रास्ता निकालने में विफल रहे और आख़िर में उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
बढ़ते संकट और प्रबंधन की चुप्पी के चलते कई कर्मचारी अब नौकरी छोड़ने या कानूनी विकल्प तलाशने पर भी विचार कर रहे हैं। इस संदर्भ में इंडिया न्यूज़ की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है।
एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “हमने हमेशा मेहनत से काम किया, लेकिन अब घर चलाना मुश्किल हो गया है। EMI, बच्चों की फीस और रोज़मर्रा के खर्च कैसे पूरे करें, यही सबसे बड़ा सवाल है।”
यदि स्थिति शीघ्र नहीं सुधरी तो यह संकट सिर्फ कर्मचारियों का नहीं, बल्कि पूरे मीडिया उद्योग की साख का सवाल बन सकता है। पत्रकारिता की रीढ़ कहे जाने वाले जमीनी कर्मचारी अगर आर्थिक असुरक्षा में जी रहे हैं, तो इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था भी प्रभावित होगी।
