गुड़गांव के पॉश सेक्टर 43 में स्थित पारस हॉस्पिटल, जो खुद को ‘विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवा’ देने वाला बताता है, अब मानवता के नाम पर धब्बा बन चुका है। हाल ही में सामने आया मामला दिल को झकझोर देने वाला है — एक मरीज की मौत के बाद भी हॉस्पिटल पैसे ऐंठने में जुटा है और मृत शरीर को परिजनों को सौंपने से मना कर रहा है।
उत्तराखंड पुलिस में सब-इंस्पेक्टर रहे प्रदीप नेगी (उम्र 45) को लिवर की गंभीर बीमारी के चलते 15 मार्च 2025 को पारस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। डॉक्टर वैभव कुमार ने एक ऑपरेशन किया और फिर विदेश चले गए। दूसरा ऑपरेशन किसी और स्टाफ से करवा दिया गया, परिजनों के ऐतराज़ के बावजूद।
परिवार को शुरू में इलाज का खर्च 18–20 लाख बताया गया। नेगी जी के विभाग ने भी मदद की। धीरे-धीरे बिल बढ़ता गया — पहले 30 लाख, फिर अचानक 42 लाख तक पहुँचा दिया गया। परिवार ने घर का सारा सोना बेचकर 30 लाख जमा किए, लेकिन हॉस्पिटल ने 12 मई को जबरन 42 लाख का बिल थमा दिया — और शव को रोक लिया।
अब न पैसा बचा, न इंसाफ मिला, न शव मिल रहा है।
परिजनों का रो-रो कर बुरा हाल है। नेगी जी की साली विनीता रावत ने हरियाणा के मुख्यमंत्री से गुहार लगाई है। उनका कहना है कि,
“हमारा सब कुछ चला गया, अब शव भी नहीं मिल रहा। अस्पताल प्रशासन हमारी एक नहीं सुन रहा। अब तो जीने की उम्मीद भी खत्म हो चुकी है।”
यह कैसा ‘हॉस्पिटल’ है जहाँ मानवता की मौत हो चुकी है? क्या पारस हॉस्पिटल जैसे संस्थान सिर्फ अमीरों के लिए हैं? आम आदमी की जान की कोई कीमत नहीं?
हम पूछते हैं —
क्या एक शव को भी आज़ाद कराने के लिए पैसे देने पड़ेंगे? क्या इंसानियत सिर्फ ICU बिल में दर्ज एक आइटम बनकर रह गई है?
यदि आप भी इस अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना चाहते हैं, इसे शेयर करें। सिस्टम तभी बदलेगा जब आवाज़ बुलंद होगी।
