आज हम आपको एक ऐसे चैनल की कहानी बताने जा रहे हैं जो नोएडा में नहीं, बल्कि जनकपुरी से संचालित होता है और एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल है। कभी इस चैनल की पहचान थी – समय पर सैलरी, प्रॉपर जॉइनिंग लेटर और हर चीज़ की पारदर्शिता। लेकिन पिछले एक साल से यहां काम करने वाले कर्मचारी गहरी परेशानियों से जूझ रहे हैं।
सैलरी में हो रही है ज़बरदस्त देरी
जहां पहले हर महीने की 10 तारीख तक सैलरी कर्मचारियों के अकाउंट में पहुंच जाती थी, अब पिछले एक साल से हालात इतने ख़राब हो गए हैं कि सैलरी अगले महीने की 25 तारीख या उससे बाद में आ रही है। होली से ठीक एक दिन पहले सैलरी दी गई थी, लेकिन उसके बाद से लगातार देरी हो रही है।
मैनेजमेंट का जवाब — “क्राइसिस है, जो जाना चाहे जाए”
जब इस बारे में मैनेजमेंट से बात की गई तो कहा गया कि “थोड़ी सी फाइनेंशियल क्राइसिस” चल रही है। कर्मचारियों ने हालात को समझकर अपने काम में कोई ढील नहीं दी, लेकिन सवाल ये है कि जब चैनल नया सेटअप खड़ा कर रहा है, नए चैनल का सामान खरीदा जा रहा है — तो क्राइसिस किस बात की?
भेदभाव का माहौल
जब कुछ लोग सैलरी की बात करते हैं तो उन्हें कहा जाता है कि जो जाना चाहे, चला जाए।
4–5 महीनों से इन्क्रिमेंट भी रोक रखा गया है।
कुछ चुनिंदा कर्मचारियों को समय से पहले सैलरी मिलती है — वो भी किसी दूसरी कंपनी के नाम पर।
बॉस खुद कहते हैं कि कुछ लोगों को “मां भी कुछ नहीं कह सकती” — यही लोग ऑफ़िस शायद ही आते हों, फिर भी सब ठीक चलता है।
सुरक्षा और सुविधाओं की अनदेखी
चैनल ना तो लड़कियों को और ना ही लड़कों को कैब सुविधा देता है — जबकि दूसरी कंपनियों में ये आम बात है।
कभी 5 बजे सुबह की शिफ्ट, कभी देर रात तक रुकने का दबाव — लेकिन कोई कैब नहीं।
चैनल की तरफ से सुरक्षा या सुविधा की कोई ज़िम्मेदारी नहीं ली जाती।
PF और सैलरी से जुड़ी शिकायतें
PF पूरी तरह कर्मचारियों की सैलरी से काटा जा रहा है, कंपनी की तरफ से कोई योगदान नहीं दिया जा रहा।
हर हफ्ते सैलरी को लेकर नया वादा किया जाता है — सोमवार या मंगलवार तक दे देंगे, लेकिन तारीखें आगे खिसकती रहती हैं।
किराया, EMI और बाकी ज़रूरतों के लिए पैसे नहीं होने से लोग मानसिक रूप से टूट रहे हैं।
इंसानियत का संकट
यहां एक ऐसा व्यक्ति भी है जिसे न तो मीडिया की समझ है और न ही मानवता की।
आपात स्थिति में भी छुट्टी नहीं दी जाती — किसी की मां बीमार थी, एक महीने की छुट्टी मांगी तो कहा गया “Resign करो”।
मजबूरियों की कोई कद्र नहीं — और ऐसे ही लोग बॉस को भड़काते हैं।
अब सवाल यह है — क्या ऐसे चैनल में काम करना फायदेमंद है?
अपनी ही सैलरी मांगना यहां “गुनाह” बन गया है।
कोई बात करने को तैयार नहीं — कहा जाता है “बात करने से कुछ नहीं होगा, जो करना है वो करेंगे।”
बॉस अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि दूसरों के कहने पर काम करते हैं।
कर्मचारियों का कहना है कि वे अब न तो कुछ समझ पा रहे हैं और न ही घर पर हालात बता पा रहे हैं। EMI, रेंट और ज़िम्मेदारियों के बीच वे फंसे हुए हैं। आख़िर रास्ता क्या है? जाएं तो जाएं कहां?
